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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।

उत्तर -

प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता
(Necessity of Regional Planning)

तेजी से बदलते विश्व में स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रान्तीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर मानव द्वारा विकास के नाम पर किये गये कार्यों के कारण अनेक प्रकार की विषमतायें उत्पन्न हुई हैं और पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ गया है। सामाजिक-आर्थिक विषमताओं को कम करने ती पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाये रखने के लिये प्रभावी प्रादेशिक नियोजन का होना आवश्यक है। विश्व के अलग-अलग देशों का विकास स्तर अलग-अलग प्रकार का है। जो देश अभी विकास में पिछड़े हैं वे निरन्तर प्रयत्नशील हैं कि वे ऐसे राष्ट्रों के समकक्ष विकास कर लें जहाँ वर्तमान में भौतिक सुविधाओं तथा जीवन- गुणवत्ता का स्तर श्रेष्ठ है।

किसी एक क्षेत्र के विकास के लिये बनाई जाने वाली प्रादेशिक नीति दूसरे क्षेत्र के विकास के लिये अनुपयुक्त हो सकती है। इसलिये यह आवश्यक है कि क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों, लोगों की आवश्यकताओं, क्षमताओं, प्राविधिकी आदि के अनुरूप नीति का निर्माण हो, जो एक ओर क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा और दूसरी ओर संसाधनों का सदुपयोग होगा। निम्न कारणों से विश्व के अलग-अलग देशों में प्रादेशिक नियोजन आवश्यक है-

(1) विश्व के कुछ विकासशील देश लम्बे समय तक विकसित देशों के उपनिवेश रहे। विदेशी शासकों ने शासित भू-भागों के संसाधनों का दोहन करके अपने देशों का विकास किया। इसका परिणाम यह हुआ कि विकसित देशों में अधिक विकास हुआ तथा उपनिवेश विकास में पिछड़ गये। राजनीतिक चेतना जाग्रत होने पर जब उपनिवेश स्वतन्त्र हुये तो उन्हें अपने-अपने क्षेत्रों में विकास करने के लिये संसाधनों और प्रौद्योगिकी की जरूरत हुई। परिणामतः उपनिवेशों व अन्य पिछड़े देशों में अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिये प्रादेशिक नियोजन जरूरी हो गया। आज विश्व के सभी विकसित व विकासशील देश संसाधनों के सम्यक् उपयोग हेतु प्रादेशिक नियोजन को अपनाने लगे हैं। रूस में आर्थिक प्रदेशों के सीमांकन, फ्रांस में प्रशासनिक सीमाओं के निर्धारण तथा स्वीडन में अधिवासों व परिवहन तन्त्र के विकास में प्रादेशिक नियोजन को महत्व दिया गया है। रूस में नियोजन भूगोल (Geography of Planning) को रचनात्मक भूगोल (Constructive Geography) की संज्ञा प्रदान की जाती है। नियोजन भूगोल ही अर्थशास्त्र, समातशास्त्र, इंजीनियरिंग, वास्तुकला आदि से हमारा सम्पर्क कराता है। फलतः इससे अध्ययन करने के नये क्षेत्रों का पता चलता है। प्रादेशिक नियोजन में अध्ययन किये जाने वाले क्षेत्रों में नगरीय या ग्रामीण दोनों प्रकार के क्षेत्र शामिल रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े नियोजन को ग्राम्य नियोजन (Country or Rural Planning) तथा नगरीय क्षेत्रों के नियोजन को नगरीय नियोजन (Urban Planning) कहते हैं। इस प्रकार प्रादेशिक नियोजन का उद्देश्य ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों में एकीकरण या समाकलन लाना होता हैं। भारत जैसे देश में लगभग दो-तिहाई जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, वहाँ ग्रामीण क्षेत्रों के नियोजन की महती आवश्यकता है।

(2) विकसित क्रोड व अविकसित उपान्त में संतुलन के लिये - प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता उन देशों व प्रदेशों के लिये भी जरूरी हो गई जो क्रोड - उपान्त (Core Periphery) की समस्या से जूझ रहे थे। क्रोड में अत्याधुनिक अर्थव्यवस्था तथा उपान्त में अत्यधिक पिछड़ी अर्थव्यवस्था होती है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वप्रथम ग्रेट ब्रिटेन एक क्रोड (Centre या Core) के रूप में विश्व मानचित्र पर उभरा, जिसकी तुलना में भारत सहित ब्रिटेन के अन्य उपनिवेश उपान्त के रूप में पिछड़ गये। जे० आर० पी० फ्रीडमैन (J.R.P. Friedman) ने ब्रिटेन - भारत के विकास को क्रोड - उपान्त के रूप में देखा है। क्रोड - उपान्त प्रभाव के कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रादेशिक असंतुलन उत्पन्न हुआ जिसे समाप्त करने के लिए प्रादेशिक नियोजन आवश्यक है। आर्थिक विकास में क्रोड-उपान्त समस्या सभी स्तरों पर मिलती है। क्रोड का विकास उपान्त की कीमत पर होता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत ने अपने भूवैन्यासिक संगठन को परिवर्तित करने के लिए प्रादेशिक नियोजन की मदद ली है। ग्रामीण व नगरीय क्षेत्रों का संतुलित विकास हो इसके लिए भी प्रादेशिक नियोजन आवश्यक है।

(3) भू-वैन्यासिक संगठन की मजबूती के लिये - लम्बे समय तक परतन्त्र रहने वाले उपनिवेशों में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद अर्थ तन्त्र को विकसित करने हेतु आवश्यक संगठन शिथिल व कमजोर पड़ गया था। ऐसे देशों में विदेशी शासकों ने शासित क्षेत्रों के संसाधनों कादोहन स्वराष्ट्र निर्माण के लिये किया। उपनिवेशों में विदेशी शासकों ने उस अवसंरचना (Infrastructure) का निर्माण किया जिससे शासकों को शासन करने में कोई कठिनाई न हो। ऐसी अवस्थापना सुविधायें निर्मित करने के पीछे जनता के हितों की उपेक्षा की जाती थी। ऐसे देशों को स्वतन्त्र होने के बाद कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार आदि के विकास के लिये विस्तृत बड़ी परियोजनाओं को पूरा करने में कठिनाई थी। इसलिये इन देशों ने प्रादेशिक नियोजन को अपनाया। भारत भी इसका अपवाद नहीं है।

(4) स्थानीय संसाधनों के सदुपयोग के लिये - प्रादेशिक नियोजन स्थानीय संसाधनों के सम्यक् उपयोग पर बल देता है जिससे उसका लाभ समाज के सभी लोगों को मिल सके। सामाजिक-आर्थिक विकास सम्बन्धी विषमता व असंतुलन दूर हो सके। प्रादेशिक नियोजन क्षेत्रीय असंतुलन समाप्त कर उचित चहुँमुखी विकास पर ध्यान केन्द्रित करता है इसलिये इसकी सभी देशों को जरूरत है। वर्तमान में प्रादेशिक आर्थिक संश्लिष्ट निर्माण हेतु प्रादेशिक नियोजन को आवश्यक समझा जाने लगा है। प्रादेशिक-आर्थिक संश्लिष्ट के निर्माण से संसाधनों का समाज के सभी वर्गों में समान वितरण व सम्यक् उपयोग होता है। इससे देश के विभिन्न प्रदेशों में व्याप्त असंतुलन को समाप्त कर चहुँमुखी सम्यक् विकास किया जा सकता है।

(5) जनांकिकीय व पर्यावरणीय समस्याओं के निराकरण के लिये - वर्तमान समय में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण विभिन्न राष्ट्रों में बेरोजगारी, कुपोषण, बीमारी भुखमरी, अस्वास्थ्यकर निवास स्थान, अशिक्षा व प्रदूषण जैसी समस्यायें भयावह बनाती जा रही हैं। इन समस्याओं के निराकरण के लिये प्रत्येक राष्ट्र चिन्तित है। इन समस्याओं का निराकरण कुछ हद तक प्रादेशिक नियोजन द्वारा सम्भव है। संसाधनों के सम्यक् शोषण तथा विकास में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिये प्रत्येक राष्ट्र प्रयत्नशील है। इसलिये सभी देशों के लिये प्रादेशिक नियोजन आवश्यक है।

(6) विभिन्न आर्थिक क्रिया-कलापों का समाकलन- किसी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में कई क्षेत्रकों (Sectors) जैसे - कृषि, खनन, उद्योग, परिवहन, व्यापार - वाणिज्य आदि योगदान देते हैं। इनमें से जो क्षेत्रक पिछड़ जाता है उसका दुष्प्रभाव सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इन क्षेत्रकों में सामंजस्य व समाकलन भी आवश्यक है। आर्थिक क्षेत्रकों को समान रूप से विकसित करने के लिये प्रादेशिक नियोजन का प्रयोग करना पड़ता है।

(7) राजनीतिक स्थायित्व के लिये - प्रादेशिक नियोजन का योगदान राज्य के प्रशासन तन्त्र को स्थायित्व प्रदान करने में भी होता है। देश की एकता एवं अखण्डता को बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि राज्य (राष्ट्र) के सभी क्षेत्र विकसित हों और राज्य के किसी भी कोने में विद्रोह व आक्रोष की भावना न पनपने पाये। धार्मिक व साम्प्रदायिक सौहार्द्र बनाये रखने व सरकार की नीतियों को जन साधारण तक पहुँचाते में प्रादेशिक नियोजन का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। अस्थिर राजनीतिक परिस्थितियों में विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिये अविकसित भू-भागों में राजनीतिक स्थायित्व के लिये प्रादेशिक नियोजन बहुत आवश्यक है।

(8) जीवन गुणवत्ता में सुधार व वृद्धि के लिये - पृथ्वी पर मानव जीवन की गुणवत्ता एक जैसी नहीं है। कुछ क्षेत्रों में सैंकड़ों वर्षों से मनुष्य अत्यन्त पिछड़ा जीवन व्यतीत करता चला. आ रहा है, जबकि कुछ क्षेत्रों में मानव जीवन की गुणवत्ता अत्यन्त उच्च स्तर की है। मानव चाहे किसी भी देश का हो, वह ऐसा जीवन स्तर बढ़ाने की सदैव कोशिश में रहता है ताकि उसकी क्षमताओं का विकास हो सके। वह आर्थिक विकास को चरम शिखर तक ले जाना चाहता है, जिससे उसके जीवन स्तर में सुधार हो सके। सामाजिक-राजनीतिक न्याय सभी को सुलभ हो सके, और विकास कार्यों में सभी की भागीदारी हो, इसके लिए प्रादेशिक नियोजन अपनाना जरूरी हैं।

(9) संसाधनों एवं पारिस्थितिकी में संतुलन के लिये - प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता इसलिये भी है कि अन्धाधुन्ध संसाधनों के उपयोग करने से उनका पर्यावरण के साथ संतुलन बिगड़ गया है। त्वरित विकास की दौड़ में जहाँ एक ओर प्राकृतिक संसाधन नष्ट हुये हैं वहीं दूसरी ओर पर्यावरण प्रदूषण का खतरा चुनौती के रूप में बढ़ गया है। इससे जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, शोर, मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी जैसी समस्यायें उत्पन्न हुई हैं। अतः प्राकृतिक संसाधनों व पारिस्थितिकी के मध्य समन्वय स्थापित करने के लिये प्रादेशिक नियोजन आवश्यक है।

(10) राज्य को सुदृढ़ आर्थिक आधार देने हेतु - प्रादेशिक नियोजन राज्य को सुदृढ़ आर्थिक आधार देता है। इसके माध्यम से उपयुक्त व कुशल अवस्थापनाओं के लिये जो योजनायें बनाई जाती हैं, उनके पूरे हो जाने पर आर्थिक विकास तेजी से घटित होता है। प्रादेशिक नियोजन उपयुक्त स्थानों पर ही औद्योगिक क्रियाओं की स्थापना का सुझाव देता है। इससे युद्धकाल के समय उद्योगों की रक्षा होती है। स्टालिन का विचार था कि तत्कालीन सोवियत रूस के प्रत्येक प्रदेश का इस प्रकार विकास किया जाये ताकि यदि कोई पूँजीवादी देश उस पर आक्रमण करके कुछ भाग पर अधिकार भी कर ले तो देश की अर्थव्यवस्था असंतुलित न होने पाये।

अतः स्पष्ट है कि किसी देश के समाकलित यथेष्ठ विकास के लिये प्रादेशिक नियोजन आवश्यक है। इससे सम्बन्धित भू-क्षेत्र के निवासियों का जीवन खुशहाल होगा, संसाधनों का सम्यक् उपयोग होगा, प्राकृतिक संसाधनों व पारिस्थितिकी में संतुलन बना रहेगा। सामाजिक-आर्थिक विषमतायें कम उत्पन्न होंगी, सभी क्षेत्रकों का समान रूप से विकास होगा, सभी को सामाजिक न्याय व सुरक्षा मिलेगी तथा राष्ट्र की एकता व अखण्डता मजबूत होगी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

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